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लेखनी कहानी -09-Mar-2023- पौराणिक कहानिया

जैनब-खुदा करे कि कोई मर्द औरत का कलमा पढ़े।

 

इतने में मामा नाश्ते के लिए मिठाइयाँ लाए। माहिर अली ने एक मिठाई जाहिर को दी, एक जाबिर को। इन दोनों ने जाकर साबिर और नसीमा को दिखाई। वे दोनों भी दौड़े। जैनब ने कहा-जाओ, खेलते क्यों नहीं! क्या सिर पर डट गए! जाने कहाँ के मरभुखे छोकरे हैं। इन सबों के मारे कोई चीज मुँह में डालनी मुश्किल है। बला की तरह सिर पर सवार हो जाते हैं। रात-दिन खाते ही रहते हैं, फिर भी जी नहीं भरता।

 

रकिया-छिछोरी माँ के बच्चे और क्या होंगे!

 

माहिर ने एक-एक मिठाई उन दोनों को भी दी। तब बोले-गुजर-बसर की क्या सूरत होगी? भाभी के पास तो रुपये होंगे ?

 

जैनब-होंगे क्यों नहीं! इन्हीं रुपयों के लिए तो खसम को जेल भेजा। देखती हूँ, क्या इंतजाम करती हैं। यहाँ किसी को क्या गरज पड़ी है कि पूछने जाए।

 

माहिर-मुझे अभी जाने कितने दिनों में जगह मिले। महीना-भर लग जाए, महीने लग जाएँ। तब तक मुझे दिक मत करना।

 

जैनब-तुम इसका गम करो बेटा! वह अपना सँभालें, हमारा भी खुदा हाफिज है। वह पुलाव खाकर सोएँगी, तो हमें भी रूखी रोटियाँ मयस्सर हो ही जाएँगी।

 

जब शाम हो गई, तो जैनब ने मामा से कहा-जाकर बेगम साहब से पूछो, कुछ सौदा-सुल्फ आएगा, या आज मातम मनाया जाएगा?

 

मामा ने लौट आकर कहा-वह तो बैठी रो रही हैं। कहती हैं, जिसे भूख हो, खाए, मुझे नहीं खाना है।

 

जैनब-देखा! यह तो मैं पहले ही कहती थी कि साफ जवाब मिलेगा। जानती है कि लड़का परदेस से आया है, मगर पैसे निकलेंगे। अपने और अपने बच्चों के लिए बाजार से खाना मँगवा लेगी, दूसरे खाएँ या मरें, उसकी बला से। खैर, उन्हें उनके मीठे टुकड़े मुबारक रहें, हमारा भी अल्लाह मालिक है।

 

कुल्सूम ने जब सुना था कि ताहिर अली को : महीने की सजा हो गई, तभी से उसकी ऑंखों में ऍंधोरा-सा छाया हुआ था। मामा का संदेशा सुना, तो जल उठी। बोली-उनसे कह दो, पकाएँ-खाएँ, यहाँ भूख नहीं है। बच्चों पर रहम आए, तो दो नेवाले इन्हें भी दे दें।

 

मामा ने इसी वाक्य को अन्वय किया, जिसने अर्थ का अनर्थ कर दिया।

 

रात के नौ बज गए। कुल्सूम देख रही थी कि चूल्हा गर्म है। मसाले की सुगंधा नाक में रही थी, बघार की आवाज भी सुनाई दे रही थी; लेकिन बड़ी देर तक कोई उसके बच्चों को बुलाने आया, तो वह बैन कर-करके रोने लगी। उसे मालूम हो गया कि घरवालों ने साथ छोड़ दिया और अब मैं अनाथ हूँ, संसार में कोई मेरा नहीं। दोनों बच्चे रोते-रोते सो गए। उन्हीं के पैताने वह भी पड़ रही। भगवान्, ये दो-दो बच्चे, पास फूटी कौड़ी नहीं, घर के आदमियों का यह हाल, यह नाव कैसे पार लगेगी!

 

माहिर अली भोजन करने बैठे, तो मामा से पूछा-भाभी ने भी कुछ बाजार से मँगवाया है कि नहीं।

 

जैनब-मामा से मँगवाएँगी, तो परदा खुल जाएगा? खुदा के फजल से साबिर सयाना हुआ। गुपचुप सौदे वही लाता है, और इतना घाघ है कि लाख फुसलाओ, पर मुँह नहीं खोलता।

 

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